Monday, 14 February 2011

गर ठुकराया हमें तो और कौन देगा ऐसी मिसाल...



"कि कब से बेकरार थे, कितने बीमार थे,

क्या करते, कैसे कहते इतने लाचार थे।

उन्हें भी थी खबर हमारी चाहत की खूब,

वो न सुनने को, न हम कहने को तैयार थे।।



पल बीते, बीते साल पर दिल का रहा वही हाल,

बढ़ती रही चाहत पर बदला न दिल का सवाल।

उनकी आंखों में थी चमक पर था एक ख्याल,

गर ठुकराया हमें तो और कौन देगा ऐसी मिसाल।।



शायद खुदा को थी हमारी वफा की ऐसी फिक्र,

आखिरकार एक दिन उन्होंने अपने होंठ हिलाए।

थोड़ा इठलाए, इतराए और फिर कुछ यूं मुस्कराए,

जिस बात को दिल-ए-नादां था "अमित" बेकरार।।



चंद मोहब्बत के अल्फाज उनकी जुबां पे आए,

आंखों में आंखें डालकर वो कुछ यूं शरमाए।

कि समझ में आया हमें इकरार का यह अंदाज,

कि होंठ भी न हिलें आंखें ही सबकुछ कह जाएं।।



यही है मोहब्बत की वो कहानी जो हर दिल चाहे,

कि जिससे करे वो आशिकी वो यार मिल जाए।

उस पल के बाद चाहे आशिक फना हो जाए,

या खुदा तेरी रहमत हर आशिक के साथ हो जाए।।"

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