Monday, 14 February, 2011

गर ठुकराया हमें तो और कौन देगा ऐसी मिसाल...



"कि कब से बेकरार थे, कितने बीमार थे,

क्या करते, कैसे कहते इतने लाचार थे।

उन्हें भी थी खबर हमारी चाहत की खूब,

वो न सुनने को, न हम कहने को तैयार थे।।



पल बीते, बीते साल पर दिल का रहा वही हाल,

बढ़ती रही चाहत पर बदला न दिल का सवाल।

उनकी आंखों में थी चमक पर था एक ख्याल,

गर ठुकराया हमें तो और कौन देगा ऐसी मिसाल।।



शायद खुदा को थी हमारी वफा की ऐसी फिक्र,

आखिरकार एक दिन उन्होंने अपने होंठ हिलाए।

थोड़ा इठलाए, इतराए और फिर कुछ यूं मुस्कराए,

जिस बात को दिल-ए-नादां था "अमित" बेकरार।।



चंद मोहब्बत के अल्फाज उनकी जुबां पे आए,

आंखों में आंखें डालकर वो कुछ यूं शरमाए।

कि समझ में आया हमें इकरार का यह अंदाज,

कि होंठ भी न हिलें आंखें ही सबकुछ कह जाएं।।



यही है मोहब्बत की वो कहानी जो हर दिल चाहे,

कि जिससे करे वो आशिकी वो यार मिल जाए।

उस पल के बाद चाहे आशिक फना हो जाए,

या खुदा तेरी रहमत हर आशिक के साथ हो जाए।।"

Sunday, 30 January, 2011

महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ?

नाम: मोहनदास करमचंद गांधी। उपनाम: बापू, संत, राष्ट्रपिता, महात्मा
गांधी। जन्मतिथि: 2 अक्तूबर 1869। जन्म स्थान: पोरंबंदर, गुजरात। विशेष:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंहिसक और शांतिप्रिय प्रमुख क्रांतिकारी,
जन्मदिन पर राष्ट्रीय अवकाश, भारतीय मुद्रा पर फोटो, सरकारी कार्यालयों
में तस्वीर।

बचपने से ही विद्यालयों में बच्चों को बापू के बारे में बताया जाता है और
उनकी जीवनी रटाई जाती है। दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल, साबरमती
के संत तूने कर दिया कमाल। गाना भी हिंदुस्तानियों की जुबां पर सुना जा
सकता है। लेकिन नाम गुम जाएगा चेहरा ये नजर आएगा... कहावत आज बापू पर
चरितार्थ होती दिख रही है। बस फर्क इतना है कि नाम गांधी जयंती पर याद
आता है और चेहरा कभी कभार नोट को ध्यान से देखने पर दिखता है।

इतनी जानकारी आज स्वतंत्र भारत में अधिकांशत: हर पढ़े लिखे व्यक्ति को
पता है। गांधी की जीवनी बचपने में पढऩे के बाद हर वर्ष 2 अक्तूबर को
राष्ट्रीय अवकाश वाले दिन भी गांधी से संबंधित कई लेख पढऩे को मिल जाते
हैं। लेकिन महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ? उनके कितने
बच्चे थे? आज उनके परिवार के सदस्य जीवित भी हैं या नहीं? उनके परिवार की
कितनी पीढिय़ां आज मौजूद हैं? वे क्या कर रहीं हैं? कहां हैं? कितने सदस्य
हैं? जैसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब पढ़े लिखे तो क्या विशेषज्ञों और
पीएचडी धारकों को भी नहीं पता होंगे।

लेकिन आज आपको बताते हैं महात्मा गांधी के परिवार की मौजूदा स्थिति के
बारे में। इंटरनेट की एक वेबसाइट की मानें तो बापू के पौत्र, प्रपौत्र और
उनके भी आगे के वंशज आज विश्व में छह देशों में निवास कर रहे हैं। जिनकी
कुल संख्या 136 सदस्यों की है। हैरानी होगी यह सुनकर कि इनमें से 12
चिकित्सक, 12 प्रवक्ता, 5 इंजीनियर, 4 वकील, 3 पत्रकार, 2 आई.ए.एस., 1
वैज्ञानिक, 11 चार्टड एकाउंटेंट, 5 निजी कंपनियों मे उच्चपदस्थ अधिकारी और
4 पी.एच.डी. धारी हैं। इनमें सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मौजूदा
परिवार में लड़कियों की संख्या लड़कों से काफी ज्यादा है। आज उनके परिवार
के 136 सदस्यों में से 120 जीवित हैं। जो भारत के अलावा अमेरीका, दक्षिण
अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंग्लैंड में रहते हैं।

बापू के बारे में:
महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद्र और माता का नाम पुतलीबाई था। अपने
परिवार में सबसे छोटे बापू की एक सबसे बड़ी बहन और दो बड़े भाई थे। इनकी
सबसे बड़ी बहन रलियत, फिर भाई लक्ष्मीदास और भाभी नंद कुंवरबेन, भाई
कृषणदास और भाभी गंगा थीं।

बापू का परिवार
सबसे बड़े पुत्र हरिलाल (1888-18 जून 1948) का ब्याह गुलाब से हुआ। जबकि
दूसरे पुत्र मणिलाल (28 अक्तूबर 1892-4 अप्रैल 1956) की पत्नी का नाम
सुशीला था। तीसरे पुत्र रामदास (1897-1969)की शादी निर्मला से हुआ। जबकि
चौथे और अंतिन पुत्र देवदास (1900-1957)की पत्नी लक्ष्मी थीं।

वंशावली दूसरी पीढ़ी से
-रामिबेन गांधी-कवंरजीत परिख
१.अनसुया परिख-मोहन परिख
क. राहुल परिख-प्रभा परिख ख. लेखा-नरेन्द्र सुब्रमण्यम
अवनी व अक्षय अमल

2.सुधा वजरिया-व्रजलाल वजरिया
क.मनीषा-राजेश परिख ख. पारुल-निमेष बजरिया
नील व दक्ष अनेरी व सार्थक

ग. रवि वजरिया-शीतल वजरिया
आकाश व वीर

3. प्रबोध परिख-माधवी परिख
क. सोनल-भरत परिख ख. पराग-पूजा परिख
रचना व गौरव प्राची व दर्शन

४. नीलम परिख-योगेन्द्र परिख
क. समीर परिख-रागिनी पारिख
सिद्धार्थ, पार्थ व गोपी

-कांतिलाल गांधी-सरस्वती गांधी
१. शांतिलाल-सुझान गांधी
अंजली, अलका , अनिता व एना

2. प्रदीप गांधी-मंगला गांधी
प्रिया व मेघा

-रसिकलाल गांधी

-मनुबेन गांधी-सुरेन्द्र मशरूवाला
१. उर्मि देसाई-भरत देसाई
क. मृणाल देसाई-आरती देसाई ख. रेणू देसाई

-शांतिलाल गाँधी
------------------------------
पहली पीढी । दूसरी पीढी । तीसरी पीढी । चौथी पीढी । पाँचवीं पीढी

-सीता गांधी-शशीकांत धुबेलिया
१. कीर्ति मेनन-सुनील मेनन
सुनीता

2. उमा मिस्त्री-राजेन मिस्त्री
सपना

3. सतीश धुपेलिया-प्रतिभा धुपेलिया
मीशा, शशिका व कबीर

-अरुण गांधी-सुनंदा गांधी
क. तुषार गांधी-सोनल गांधी ख. अर्जना प्रसाद- हरि प्रसाद
विवान व कस्तूरी अनिष व परितोष

-इला गांधी-मेवालाल रामगोबिन
क. कृष गाँधी
ख. आरती रामगोबिन
ग. केदार रामगोबिन-मृणाल रामगोबिन
घ. आशा रामगोबिन
ड़. आशिष रामगोबिन-अज्ञात
मीरा व निखिल

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-सुमित्रा गांधी-गजानन कुलकर्णी
1. सोनाली कुलकर्णी

2. श्रीकृष्ण कुलकर्णी-नीलू कुलकर्णी
विष्णु

3. श्रीराम कुलकर्णी-जूलिया कुलकर्णी
शिव

-कहान गांधी-शिव लक्ष्मी गांधी

-उषा गोकाणी-हरीश गोकाणी
1. संजय गोकाणी-मोना गोकाणी
नताशा व अक्षय

2. आनंद गोकाणी-तेजल गोकाणी
करण व अर्जुन

---------------------------
-रामचंद्र गांधी-इंदू गांधी
लीना गाँधी

-तारा भट्टाचार्य-ज्योति भट्टाचार्य
1. विनायक भट्टाचार्य-लूसी भट्टाचार्य
इण्डिया अनन्या, अनुष्का तारा व एंड्रीया लक्ष्मी

2. सुकन्या भरतराम-विवेक भरतनाम
अक्षर विदूर

-राजमोहन गांधी-उषा गांधी
1. देवव्रत गांधी
2. सुप्रिया गाधी

-गोपाल कृष्ण गांधी-तारा गांधी
1. अनिता गांधी
2. दिव्या गांधी
3. रुस्तम मणिया

Monday, 3 January, 2011

सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक थे अतुल जी

"है मौत उसी की जिस पर करे जमाना अफसोस,
यूं तो मरने के लिए सभी आया करते हैं।"

वैसे तो संपादकीय और प्रबंधन के बीच की रार-तकरार और उनसे उपजने वाली दिक्कतों से तकरीबन सभी मीडियाकर्मी आज काफी हद तक रूबरू हो चुके हैं। हिंदी पट्टी के प्रमुख अखबारों में तो यह बात भलीभांति अनुभव की जा सकती है। लेकिन अमर उजाला परिवार के लोगों में से अधिकांश ही शायद इससे कोई सरोकार रखते हों। इसका प्रमुख कारण अमर उजाला के प्रबंध निदेशक श्री अतुल महेश्वरी की दूरदर्शिता, दूरगामी निर्णय, कुशल प्रबंधन क्षमता, संपादकीय में नियमित हस्तक्षेप और हर विभाग में संतुलन बनाने की बेहतर कला थी।
शायद हिंदी के प्रमुख अखबारों मसलन दैनिक जागरण, भास्कर, हिंदुस्तान या अन्य को मेरी कही बात बुरी लग जाए लेकिन सत्य कटु ही होता है। अमर उजाला को देश के सर्वश्रेष्ठ तीन अखबारों में शुमार करने का श्रेय अतुल जी को ही जाता है। इसे पाने के लिए दूरदर्शिता और प्रबंधकीय कौशल को अमर उजाला से जुड़ा हर शख्स बहुत बेहतर ढंग से जानता और मानता है। लेकिन इसके अलावा भी सबसे बड़ी बात जो अन्य अखबारों की तुलना में अतुल जी को बहुत बड़ा, पूजनीय और आदर्श बनाती है वो है उनका सर्वश्रेष्ठ मानव संसाधन प्रबंधन कौशल और कर्मचारियों के हित में लिए जाने वाले निर्णय।
मैं यहां अन्य अखबारों को नीचा दिखाने की नहीं बल्कि उनके प्रबंधकों को स्वर्गीय श्री अतुल महेश्वरी जी से सबक लेने की कोशिश कर रहा हूं। वो भी यह कि ऊंचा उठने के दो रास्ते होते हैं पहला कि अपने साथ वाले लोगों को नीचे दबाकर उनपक खड़ा होकर ऊंचा हुआ जाए, दूसरा अपने साथ वालों को इतना ऊंचा कर दिया जाए कि खुद का कद और ऊंचा हो जाए। पहला तरीका जागरण, भास्कर और हिंदुस्तान अपना रहे हैं। जबकि दूसरा तरीका स्वर्गीय अतुल जी ने बेहतर ढंग से अपनाया। अपने कर्मचारियों को प्रमुख हिंदी अखबारों की तुलना में सबसे बेहतर सुविधाएं, वेतनभत्ते, सम्मान, प्रोन्नति देने में उनका कोई सानी नहीं। अमर उजाला के कर्मचारी अन्य अखबारों की तुलना में खुद को इस मामले में काफी आगे मानते हैं। लेकिन अन्य अखबारों में इस बात की कमी के चलते वहां असंतोष और समस्याएं फैली हुई हैं। कर्मचारियों के हितों की अनदेखी कर मालिक-प्रबंधन अपनी जेबें भरने और स्वार्थ साधने में जुटे हुए हैं। कर्मचारियों को उठाकर ऊपर उठने से इन्हें कोई वास्ता नहीं।
यूं तो मैं एक अमर उजाला का कर्मचारी मात्र हूं और अभी तक तीन-चार बार ही उनसे रूबरू हुआ। अकेले में उनसे कभी बात नहीं हो सकी। हर बार बैठक में ही उन्हें बोलते और सभी से अपना पक्ष रखने के लिए कहते सुना। लेकिन शायद ही अपने सबसे कनिष्ठ कर्मचारी के साथ बैठकर विचार विमर्श करने की क्षमता किसी अन्य अखबार के मालिकों में हों।
एक और हतप्रभ और चिंतित कर देने वाली भी बात है जिसके कारण मैं अतुल जी को कुछ दोष भी देना चाहूंगा कि अपने खराब स्वास्थ्य की जानकारी उनके परिवार के अलावा किसी को नहीं थी। पिछले साल उनके ऑपरेशन के बाद इस वर्ष भी वे जब गुडग़ांव के फोर्टिंस अस्पताल में दाखिल हुए तो अमर उजाला के वरिष्ठ संपादकीय, प्रबंधकीय कर्मियों को इसकी कानोंकान खबर तक नहीं हुई। जानकारों के मुताबिक अतुल जी नहीं चाहते थे कि उनके बिगड़े स्वास्थ्य की खबर से काम में किसी भी प्रकार की बाधा पड़े। यदि वे समय रहते इसके बारे में बताते तो देश-विदेश के बड़े अस्पतालों में उनका आसानी से इलाज कराया जा सकता था। लेकिन कर्मठता को वरीयता देने की उनकी फितरत ही उन्हें दी दगा दे गई।
आज अतुल जी के असामायिक निधन ने इस बात को सामने लाने के लिए मजबूर किया। समूचे मीडिया जगत के लिए और मीडिया में अपना करियर तलाश रहे युवाओं के लिए यह बड़ी ही दुखद और अपूर्णनीय क्षति है। एक लंबे सफर के कुशल मार्गदर्शक और विनम्र स्व. अतुल जी मीडिया जगत के लिए एक पथ प्रदर्शक की तरह जिए।

कुमार हिंदुस्तानी