Tuesday 16 March, 2010

Exclusive Interview Of Dr. Kumar Vishwas

'करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है,
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।Ó


युवाओं में लोकप्रिय एक इडियट रैंचो हंै डॉ. कुमार विश्वास

*एक निरपेक्ष और निडर कम्यूनिकेटर बनना चाहता हूं*
*मैं तो युवाओं की भावनाओं के संवाद का जरिया मात्र हूं*

भारत ही नहीं बल्कि विदेशों के भी लाखों युवाओं ने सैकड़ों बार उन्हें सुना, पढ़ा, डाउनलोड और फॉरवर्ड किया है। लाखों युवाओं के लिए वो एक जीता जागता संदेश हैं। अंर्तआत्मा की आवाज सुनकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी और पीसीएस की नौकरी को लात मार दी। देश के विकास में युवाओं को एकजुट करने वाले, इंजीनियरिंग-मेडिकल-मैनेजमेंट छात्रों के अलावा नौकरीपेशा युवाओं के बीच बहुचर्चित और मोती जैसे शब्दों को अपनी दिलकश आवाज में पिरोकर कभी हंसाने तो कभी रुलाने वाली अंतरराष्ट्रीय शख्सियत का नाम है डॉ. कुमार विश्वास।

जी हां, कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है और पगली लड़की जैसी कविताओं के जरिए युवाओं के दिल में राज करने वाले डॉ. कुमार आज के युवाओं के बीच थ्री इडियट्स के एक इडियट यानी रैंचो बन चुके हैं। पेश है अपनी आवाज और शब्दों के जादू से युवाओं को झकझोर देने वाले डॉ. कुमार से पहली बार हुई किसी खास बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।

प्रश्न: आपको क्या कहें वर्चुअल कवि, मोटीवेटर या फिर कुछ और?

डॉ. कुमार-मैं पारंपरिक कवियों की श्रेणी का नहीं बल्कि नई जमात का कम्यूनिकेटर मात्र हूं। उस जमात का जो बेहतर कम्यूनिकेशन के अभाव में एनरिके इग्लेसियस के सम बॉडी को सुन रही थी, फ्रैंड्स देख रही थी। इनको एक ऐसा शख्स चाहिए था जो इनके दिल की बात कहे, इसलिए नियति ने मुझे चुन लिया।

प्रश्न: पढ़ाई और ह्रदय परिवर्तन की क्या कहानी है?

डॉ. कुमार-ये बहुत लोकप्रिय और बदनाम कहानी हो चुकी है। मैं निम्नमध्यम वर्गीय परिवार से हूं जहां पर रोटी के लिए संघर्ष करना जरूरी होता है। मेरे दौर में आज की तरह पढ़ाई के विकल्प नहीं थे। पिता जी ने मानसिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और शारीरिक शक्तियां प्रयोग कीं। राष्ट्रीय स्तर पर 99वीं रैंक से एमएलएनआर इलाहाबाद में इंजीनियरिंग के लिए चयनित हुआ। पहले सेमेस्टर के बाद रजनीश की किताब माटी कहे कुम्हार से पढ़ कर लगा कि नियति के विपरीत नहीं जाना चाहिए। मेरा ह्रदय तो हिंदी में रचता-बसता है तो फिर यह उल्टी धारा क्यूं। फिर मैने स्नातक किया। परास्नातक प्रथम वर्ष में यूपीपीसीएस में चयनित हुआ, मुरादाबाद की एक जगह पर साढ़े तीन माह सहायक जिला परियोजना अधिकारी रहा। लेकिन फिर लगा कि क्यों प्रदेश और देश को बर्बाद किया जाए (हंसते हुए)। लेकिन नौकरी करने का जो कारण था वो चला (चली) गया, जबकि नौकरी पा चुका था। परास्नातक में विश्वविद्यालय टॉप किया। लेकिन नियति को यहीं मंजूर था। परास्नातक पूर्ण किया और उसी वर्ष यूजीसी में चयनित हो गया। तबसे कॉलेज में पढ़ा रहा हूं लेकिन गत चार वर्षों से बिना वेतन हूं लेकिन अब नहीं लगता कि नौकरी कर पाऊंगा।

प्रश्न: अखबार-टीवी से अलग इंटरनेट पर इतनी प्रसिद्धि के पीछे आपकी साजिश तो नहीं?

डॉ. कुमार-देखिए मैं मीडिया फ्रैंडली नहीं हूं। हालांकि मीडिया जगत के तमाम बड़े दिग्गज मेरे पुराने मित्रों में से हैं। इसी कारण के चलते मैं देश के एक काफी बड़े टीवी चैनल के बुलावे पर भी नहीं गया। लॉफ्टर शो में नहीं गया और आज भी बिग बॉस थ्री के लिए मुझे ट्रेस किया जा रहा है। लेकिन मैंने मना कर दिया। क्योंकि मैं जानता हूं कि वो मेरे कम्यूनिकेशन स्किल्स और लफ्फाजी से कमाना चाहते हैं। इसलिए एक ऐसा निरपेक्ष कम्यूनिकेटर बनने का मन है जो न किसी से डरता हो और न किसी की चिंता करता हो। कुछ सोचा समझा यह कार्य नहीं है बल्कि मेरे प्रशंसकों और चाहने वालों द्वारा इंटरनेट और यूट्यूब के जरिए फैलाया गया है। विश्व भर के लाखों युवा नियमित तौर पर मुझे ऑनलाइन तलाश किया करते हैं।

प्रश्न: इतने तल्ख विचार, क्रांतिकारी वक्तव्य और प्रेम, देशप्रेम, सौहार्द में डूबी कविताओं के जरिए आखिर आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं?

डॉ. कुमार-देखिए मैं जिनसे बात कर रहा हूं उनसे कोई बात नहीं करता। कक्षा नौ में पहुंचते ही उन्हें ट्रिग्नोमेट्री पकड़ा दी जाती है। फिर उन्हें भेज दिया जाता है कोटा जहां पर इंजीनियरिंग की तैयारी के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला लिया जहां प्रोफेसर्स की टेढ़ी नजर हमेशा उनपर बनीं रहती है। वे बच्चे न तो पूरी तरह से अपने मन का कर पाते हैं और न ही अपने शिक्षकों, अभिभावकों की चाहत पर खरा उतर पाते हैं। लेकिन उससे कोई कम्यूनिकेट ही नहीं कर रहा है। देश का वो सबसे सशक्त तबका घुटा जा रहा है। क्या हमारे लिए यह एक बड़ी ही सोच का विषय नहीं है कि एक क्लर्क ने अपनी मेहनत और फंड की जोड़ी गई कमाई से पढ़ाकर अपने बच्चे को इंजीनियर बनाया। बच्चे ने कानपुर आईआईटी से एमटेक किया और चार माह तक उसे प्लेसमेंट नहीं मिला तो उसने आत्महत्या कर ली। इसलिए न तो मेरी रामदेव बनने की इच्छा है और न ही किसी राजनीतिक दल से जुडऩे की इच्छा है (जिनके तमाम प्रस्ताव मेरे पास हैं)। न तो मुझे स्वर शक्ति का दुरुपयोग करने की इच्छा है। मैं तो एक ऐसा कम्यूनिकेटर बनना चाहता हूं जो दो पाइप के बीच वाल्व का काम करे। जिससे युवाओं की ऊर्जा को देश के लिए, उनके घरों के लिए और मानवता के लिए इस्तेमाल कर सकूं। अगर मैं युवाओं के पास जाकर उनसे कहता है कि यह करो यह मत करो तो वे कतई नहीं मानते। इसलिए अपने जीवन की घटनाओं और परिस्थितियों के अलावा आसपास की घटनाओं पर गौर किया और उन्हें सुनाने लगा। संयोगवश मेरी रचनाएं युवाओं ने इतनी पसंद कीं कि उन्हें इंटरनेट, यूट्यूब, आईपॉड के जरिए दुनियाभर में पसंद किया जाने लगा। आज युवा जमकर मुझे सुन रहे हैं और तमाम मेरी बात भी मान रहे हैं।

प्रश्न: नाम बताना चाहेंगे उस कारण का।

डॉ. कुमार-तुम्हारे आंखों की तौहीन है जरा सोचो, तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है।। अब क्या जरूरत रह गई नाम बताने की।

प्रश्न: कुछ पंक्तियां हमारे युवाओं के लिए सुनाएंगे?

डॉ. कुमार-चलिए सबसे पहले आप को वो पंक्ति सुनाता हूं जो आज से पहले किसी भी महफिल में नहीं सुनाई। यूट्यूब या कहीं पर भी यह पंक्तियां नहीं मिलेंगी। बिल्कुल ताजी हैं।

'कोई कब तक महज सोचे कोई कब तक महज गाए,
इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाए।
मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश में पिघले,
मैं उसकी नींद में जागूं वो मुझमें घुल के सो जाए।
कोई मंजिल नहीं जचती सफर अच्छा नहीं लगता,
अगर घर लौट भी आऊं तो घर अच्छा नहीं लगता।
करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है,
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।।Ó

3 comments:

  1. can't believe.........that's it's dr. kumar's interview. I'm a great an of him. ghazab ka kaam kiya hai aapne mr. kumar. heads down to u. salute. thanx a lot

    ReplyDelete
  2. It's really touch my Heart...... Kumar Ji..aapka Lekh padne ke baad... Dr. Kumar ki to Mai bhi fan ho gayi hu........Dr. Kumar ki baaton or kavitao mai pyaar ki khushboo mehkti hai...... or unki baaton ko aapne apne lekh se or bhi chaar chand laga diye hai........

    ReplyDelete
  3. kumar sir aap insaan hai, ya fir koi or jo v hai,
    aap urja ka vo madhayam hai jise me "PRABAL POSITIVE THINK "" khanuga.....ram bhargava (mba) bhopal m.p.

    ReplyDelete