Tuesday, 23 February 2010

U can't runaway from TRUTH.

...आंखें मूंद लेने से हकीकत नहीं छिपती मेरे दोस्त।

सभी पाठकों को नमस्कार। जाहिर सी बात है कि अगर आपने इस पोर्टल को खोला है तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया से आपका लगाव होना लाजमी है। कई जगह देखा तमाम लोगों से सुना कि यार भड़ास4मीडिया वाकई लाजवाब है। सभी तारीफ करने वाले मीडियाकर्मी है और इस पोर्टल से उनका अक्सर वास्ता पड़ता है।
लेकिन मैं इस बात से वास्ता नहीं रखता कि भड़ास4मीडिया डॉट कॉम वाकई लाजवाब है। दरअसल हकीकत इससे परे है। इस पोर्टल को लाजवाब कहने वाले मेरे दोस्त-मित्र शायद खुद से ही झूठ बोल रहे हैं। वे क्या आप सभी भी जानते हैं कि यह पोर्टल लाजवाब नहीं है। इस पोर्टल पर ऐसा कुछ भी नहीं रहता जिसकी हम सभी को जानकारी नहीं होती। तो क्या बात है जो हम सभी इससे जुड़े हुए हैं? क्यों हम सभी को इसकी लत लग चुकी है? क्यों हम सभी इंटरनेट मिलते ही जल्द से जल्द भड़ास4मीडिया डॉट कॉम टाइप करके पेज खुलने का इंतजार करते हैं? क्यों हम सभी पेज रिफ्रेश करके देखते रहते हैं कि मीडिया जगत पर अब कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? क्यों हम सभी को इंतजार रहता है कि यार मेरा लेख अब तक पब्लिश क्यों नहीं हुआ? क्यों इतने कम समय में यशवंत, सभी मीडियाकर्मियों (कुछ अपवादों को छोड़कर) के चहेते और शुभचिंतक बन गए हैं?
चलिए मैं आपको बताता हूं कि आखिर इसकी असलियत क्या है? दरअसल आज के मीडिया घरानों को हकीकत से वास्ता नहीं है। खबरों का आज व्यवसायीकरण हो चुका है। जो बाजार में बिक सकता है या फिर जिससे संस्थान को मुनाफा हो सकता है वही खबर चलाई या छापी जाती है। जो भी फायदे का सौदा हो सकता है उसे ही खबर बना दिया जाता है। विज्ञापन की पार्टी है या फिर खबर छापने या चलाने से विज्ञापन नहीं तो मेज के नीचे से कुछ मिलेगा, उसी को वरीयता दी जाती है। इस खेल की टीम के कोच और मैनेजर मीडिया घरानों के मालिक और संपादक बन बैठे हैं।
इन संस्थानों में काम करने वाले पत्रकार और डेस्क पर कार्यरत कर्मियों की फौज भी इस व्यवसायिक खबरों को लाने और छापने/दिखाने के लिए जिम्मेदार हो गई है। मालिक-संपादकों को जो पसंद है सिर्फ वही खबर है यह बात आज हर पत्रकार को भलीभांति मालूम है। आज मीडिया में एक्सक्लूसिव कुछ नहीं रहा। बल्कि मालिक-संपादक को फायदा पहुंचता है और उसने उस खबर से संबंधित बातें कभी नहीं सुनी तो वो समाचार एक्सक्लूसिव की श्रेणी में आ जाता है। मतलब साफ कि आज इन सभी संस्थानों में काम करने वाले छोटे-बड़े मीडियाकर्मी भी चाहे-अनचाहे, ज्ञान-अज्ञान, जानते-भूलते खबरों के व्यवसायीकरण के जिम्मेदार हो गए हैं। असल पत्रकारों को अच्छी तरह पता होता है कि कहां पर क्या वाकई खबर है और क्या नहीं? किसे चैनल-अखबार में स्थान मिलना चाहिए और किसे नहीं? क्या हकीकत है और क्या झूठ है? क्या लिखना/दिखाना चाहिए और क्या नहीं? इन सभी सवालों से हर असल पत्रकार बखूबी वाकिफ है। लेकिन फिर भी नौकरी चलाने के लिए उसे झूठ का चोला ओढ़कर आंख मूंद कर हकीकत पर पर्दा डालना पड़ता है। वो लिखना/दिखाना पड़ता है जिसका खबर या हकीकत से कोई सरोकार नहीं बल्कि ऊपर बैठे लोगों से ताल्लुक है।
इन सबका मतलब क्या निकलता है? चलिए आपके मुंह की बात मैं छीन कर कहता हूं कि आज हम सभी मीडियाकर्मी झूठ में जी रहे हैं। दर्शकों/पाठकों को झूठ परोस रहे हैं। हकीकत से उन्हें वहां लिए जा रहे हैं जहां मीडिया घराने का स्वार्थ जुड़ा हुआ है। यानी कि आज खुद पत्रकारों को हकीकत देखना ऐसा लगता है कि जैसे कोई इब्नेबतूता सामने आ खड़ा हुआ हो। जैसे अमावस्या की काली अंधियारी रात में सूरज अपनी रोशनी और तपिश से एकदम बौखला दे। जैसे समुंदर का पानी आसमान में तैरते हुए हिलोरे मारने लगे। जैसे पैरों तले तपते ज्वालामुखी का लावा हो और उस पर चल रहे हों।
अब फिर से आता हूं वापस उस मुद्दे पर कि क्या यह पोर्टल वाकई लाजवाब है। इसका जवाब अब तक शायद आप सभी को मिल चुका होगा। लेकिन शब्दों में बयां करना जरूरी है। दरअसल आज सभी मीडियाकर्मी हकीकत से कोसों दूर हो चुके हैं। ऐसे में भड़ास4मीडिया लोगों को नंगी हकीकत, कड़ुवा सच, पूर्ण सत्य, बेबाक बयानी, कलम की पैनी और धारदार ताकत, जमींर में कईयों फीट दब चुकी चिंगारी को सामने लाता है। जो आज मैं और मेरे पत्रकार साथी नहीं लिख/दिखा सकते उसे निडर होकर लिखता है। जो देखकर भी मुंह नहीं खोल सकते उसे पूरी दुनिया के सामने नंगा कर देता है। नौकरी जाने के डर से जो हकीकत दबा देते हैं उसे डंके की चोट पर दिखाता है।
ऐसे में हम सभी को अब सच देखने पर आश्चर्य होने लगा है। कहीं पर हकीकत पढ़ते/देखते ही शरीर का रोयां खड़ा हो जाता है कि यार इसने कैसे कर दिया। यही वो वजह है जिसने इस पोर्टल को लाजवाब बनाया है।
लेकिन अफसोस होता है कि अभी भी न जाने कितने मीडिया घराने हैं जो आंखें बंद करके यह सोच रहे हैं कि अब हकीकत कोई नहीं देख सकता। लगभग देश के सभी दिग्गज मीडिया घरानों में आज भड़ास4मीडिया डॉट कॉम को ब्लॉक कर दिया गया है। कोई भी कर्मचारी अपने कंप्यूटर पर इसे नहीं देख सकता। मीडिया घरानों के ठेकेदारों को डर है कि कहीं इससे उनके सिपहसलार कहीं बगावत न कर दें। कहीं मीडिया के अंदर भी आंदोलन का बिगुल न बज जाए। कहीं उनके संस्थान के उच्चतम प्रबंधकीय विवाद की खबर उनके सबसे नीचे काम करने वाले कर्मियों को न लग जाए। मालिक-संपादक यह सोचते हैं कि आंख बंद कर लो, सच छिप जाएगा, वेबसाइट को ब्लॉक कर दो कोई नहीं देखेगा। लेकिन बंद आंखों के अंदर मन तो खुला हुआ है। वे भी यह बात भलीभांति जानते हैं कि ऑफिस में न सही तो घर में, दोस्त के यहां, मोबाइल पर या लैपटॉप पर वे सभी कर्मी रोजाना न सही तो हर दूसरे दिन भड़ास4मीडिया देखते जरूर हैं। वेबसाइट पर किसी भी नई खबर की जानकारी इंटरनेट के जरिए न सही तो उनके किसी साथी के द्वारा फोन पर कॉल-एसएमएस के जरिए मिल जाती है।
तो मुर्दा हो चुकी गैरत के मंद (बेगैरतमंद) मालिक-संपादकों भले ही आंखें बंद कर लो, भले ही वेबसाइट पर बैन लगा दो, भले ही वेबसाइट को ब्लॉक कर दो। लेकिन हकीकत तुम्हारे बाप की बपौती नहीं जो तुम डकार जाओगे और किसी को खबर भी नहीं होगी। सच नंगा होता है और नंगा किसी से डरता नहीं। इसलिए हकीकत से वास्ता रखो। भले ही मीडिया को व्यवसाय बनाकर मोटी कमाई कर रहे हो लेकिन अपने कर्मचारियों को तो हकीकत से हमेशा रूबरू होने का पाठ तो पढ़ा ही सकते हो।

कुमार हिंदुस्तानी



3 comments:

  1. Baat 16 aane sachh hai. Lekin Adolf Hitlor ne kaha tha ki ek jhooth ko 100 baar bolo to vo sach lagne lagta hai. Uski baat aaj ke mayne me sahi hai. lekin tumhari baat bhi sahi hai mere dost.

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