Wednesday, 10 February 2010

जोश सच का गाए जा, कदम-कदम बढ़ाए जा

घंटी बजाओ तो पता चलेगा जोश सच का

आगे बढऩे की ललक होना अच्छा है और कुछ इसी राह पर शायद अमर उजाला चल निकला है। देर से ही सही लेकिन एक अच्छी शुरुआत के लिए अमर उजाला को धन्यवाद व्यक्त करता हूं। किसी बेहतरीन मकसद, लक्ष्य, सोच को सही साबित करने के उद्देश्य से प्रारंभ हुआ यह सफर अब कहां तक चलेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
जरूरी यह जानना है कि अमर उजाला अब कॉरपोरेट कल्चर को आत्मसात करने लगा है। तभी तो दो साल पहले शुरु हुए अमर उजाला के कॉरपोरेटाईजेशन के बाद केवल केबिन में कॉरपोरेट मीटिंग्स, सेमीनार, वर्कशॉप आदि होते थे। लेकिन केबिन की बत्ती बुझने और कर्मियों के बाहर निकलने के साथ ही दिमाग की बत्ती भी गुल हो जाती थी। कॉरपोरेट कल्चर केवल काल्पनिक कथानक का काम करता था।
अब लगता है अमर उजाला एक नए उजाले के साथ तैयार हो रहा है। कॉरपोरेट होने के बाद से अब वो इसका असली मतलब समझना शुरु कर रहा है। जिसका ताजा उदाहरण आजकल अमर उजाला कर्मचारियों के मोबाइल फोन को मिलाने पर सभी को पता चल रहा है। बात हो रही है अखबार कर्मियों के मोबाइल की नई कॉरपोरेट कॉलर ट्यून अमर उजाला की।

'अमर उजाला,
जोश सच का।।
रात हो या सहर,
ना रुकेगा सफर।
मीलों हमें चलना है
ये वक्त बदलना है,
ये वक्त बदलना है
ये वक्त बदलना है....
अमर उजाला,
जोश सच का।।Ó


जैसे ही आप अपने किसी भी अमर उजाला कर्मचारी मित्र का मोबाइल फोन घनघनाएंगे, उक्त कॉलर ट्यून बेहद ही जोशीली आवाज में साफ सुनाई देगी। यह कॉलर ट्यून अमर उजाला द्वारा ही रचित है और इसे गायकों ने बुलंद आवाज दे कर अल्फाजों को यथार्थ बनाने पर जोर डाला है। लेकिन अगर एक-एक अल्फाज पर गौर करें तो देखिए क्या पता चलता है।

'अमर उजाला (काफी पहले से ही सबको पता है, लेकिन कोई भी उजाला अमर नहीं हो सकता, उजाले-अंधेरे का एक अनवरत चक्र है।)Ó
'जोश सच का (यह स्लोगन ताकि सच जिंदा रहे स्लोगन की हत्या करने के बाद दिया गया। यानी सच मर गया लेकिन झूठे जोश को सच कहने में क्या जाता है? )Ó
'रात हो या सहर (काली अंधियारी रात हो या फिर उजाला, केवल जोश दिखेगा, होश के बारे में अभी नहीं पता)Ó
'न रुकेगा यह सफर (अब यह कारवां आगे बढ़ निकला है, जो किसी भी कीमत पर रुकने वाला नहीं)Ó
'मीलों हमें चलना है (यानी, कारवां इतना बढऩे के बाद भी वहीं खड़ा हुआ है। अभी भी न जाने की कितनी दूरी बाकी है जिस पर चलना है। या यूं कहें कि अब सफर की असली शुरुआत हुई है।)Ó
'ये वक्त बदलना है (सबको पता है कि समय को कोई नहीं बदल सकता। यह सदियों से चला आ रहा एक सार्वभौमिक सत्य है कि समय खुद ही आगे चलता और बदलता रहता है। लेकिन अब अमर उजाला ने यह जिम्मेदारी उठाई है। देखना है कि अमर उजाला वक्त बदलता है या फिर आने वाला वक्त अमर उजाला को बदलता है)Ó

एक बात साफ कर दूं कि यहां मैं किसी निजी स्वार्थवश अमर उजाला की बढ़ाई या बुराई नहीं कर रहा हूं। वरन, सभी को उस हकीकत से दो-चार करने की कोशिश कर रहा हूं जो अमर उजाला के बारे में शायद सभी को नहीं पता।
कौव्वा चले हंस की चाल, नुमा मुहावरे पर आंख मूंद विश्वास करते हुए अमर उजाला चला आया है। शशि शेखर के वक्त में समूह ने काफी तरक्की की। लेकिन वो तरक्की वास्तविक न होकर केवल एक नकल भर थी। अमर उजाला ने विश्व के नंबर एक हिंदी दैनिक अखबार दैनिक जागरण की नकल करना प्रारंभ किया और तरक्की के सोपान पाता चला गया।
लेकिन हकीकत में नकल करने वाला नकली ही रह जाता है। वो कभी खुद से एक मिसाल नहीं खड़ी कर सकता। वो जो भी करता है उसमें नकल की बू साफ-साफ सुंघाई देती है। पहले कंटेंट की प्रमुखता से नकल करने के कुछ वक्त बाद खुद को पुन: नकली साबित करने के लिए कॉरपोरेटाइजेशन में खुद को ढालने लगा अमर उजाला। लेकिन कॉरपोरेट मीटिंग्स में शामिल होने वाले 90 फीसदी अमर उजाला कर्मियों को शायद ही पता होता कि दरअसल यह कॉरपोरेट क्या बला है? 'अधिकांश इसे कार से उतर कर कारपेट वाले केबिन में होने वाली फालतू मीटिंग भर ही समझते आए हैं।Ó
सालों से अमर उजाला में काम करते आए असल देशी कर्मचारियों को एकदम से कॉरपोरेट का सीरप पिलाने के बाद से अमर उजाला ने फिर नकल की। अबकी बार नकल थी उसी नंबर वन अखबार के टैबलॉयड आई-नेक्स्ट की। सही समझे- कॉम्पैक्ट लांच करने के पीछे अमर उजाला की यही मंशा थी कि कहीं जागरण बड़े-छोटे अखबार की कहानी सुनाकर पूरे बाजार में कब्जा न कर ले। इसलिए फटाफट नकल की, आधी-अधूरी तैयारी से झटपट कॉम्पैक्ट का प्रकाशन शुरु कर दिया।
उधर जागरण सफलता की एक से एक नई इबारतें लिखता रहा। इसी कड़ी में उसने विश्वप्रसिद्ध इंटरनेट सर्च इंजन याहू के साथ गठजोड़ करके अपना ई-संस्करण सर्वश्रेष्ठ कर लिया। लेकिन बेचारा अमर उजाला अभी तक उस तकनीकी को नहीं समा पाया। और आज भी ऑनलाइन विशेषज्ञों की टीम अमर उजाला की वेबसाइट निर्माण में जुटी है। नकल का कितना दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सका है कि जहां जागरण की एक वेबसाइट है, वहीं नकल के चक्कर में अमर उजाला को तीन वेबसाइट बनानी पड़ गईं। लेकिन सफलता अभी भी नहीं मिल पाई है। रोज सिस्टम हैंग रहता है, वेबसाइट अपडेट नहीं हो पाती जैसी शिकायतें सामने आना आम बात है।
मेरा न केवल अमर उजाला बल्कि उन सभी विकासशील मीडिया घरानों के संपादकों, मालिकों से निवेदन है कि नकल करने वाला हमेशा नकली ही रहता है। इसलिए खुद की अकल पर भरोसा करें। हमेशा अपने कर्मचारियों पर भरोसा जताकर उन्हें कुछ ऐसा नया इजाद करने के लिए कहें जो बाजार में एक मानक बन जाए। कर्मचारियों की प्रतिभा का सही आंकलन कर प्रयोगात्मक रुख भी अपनाएं। सफलता के लिए केवल सही मौके पर सही शुरुआत करने भर की देरी होती है। इसलिए पंरपराओं की दीवारें तोड़कर और दूसरों की नकल छोड़कर खुद से एक ऐसी नई दास्तान बनाएं जो औरों के लिए भी एक मिसाल बन उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित करे।

3 comments:

  1. kya baat kahi hai kumar bhai. maan gaye. wakai agar nakal karke hi sab aklmand ban jaate to bulb, pen, aeroplane jaisee na jane kitni cheejon ka awishkaar hi na ho pata. everybody sud have ownself. well written keep it up. if got time plz visit my blog. www.masti4media.blogspot.com

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  2. Yar bat to sahi hai lekin iska ilaj kaise hoga. boodhe khurrant ideas ko aage nahi aane dete. koi baat nahi ek din hamara bhi aayega. bas apne kam ko jari rakho.

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  3. keep this spirit up. i think u can do it buddy.

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