एनसीआर में तेज गर्मी का कारण सिर्फ बढ़ता पारा ही नहीं बहुत कुछ और भी है
दिल्ली की सर्दी...गाना बहुत फेमस हुआ और सर्दियों में पारे के नीचे गिरने से पिछले कई वर्षों के रिकार्ड टूटे। लेकिन सिर्फ सर्दी ने ही सबको रूलाया ऐसा नहीं है, यहां की गर्मी भी लोगों को पसीने से तर बतर कर तड़पा रही है। राष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र में सबसे ज्यादा तरक्की की ओर बढ़ता वह क्षेत्र जहां पर हर कोई अपना आशियाना बनाने की चाह रखता है। लेकिन इस क्षेत्र में लगातार उंचाईयां छू रहे पारे के कारण बढऩे वाली गर्मी ने यहां के लोगों को किसी अन्य जगह या फिर किसी पहाड़ी जगह पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है। क्या सिर्फ बढ़ता हुआ तापमान ही इस बेइंतहा गर्मी का मुख्य कारण है या फिर कुछ और वजह भी है।
दरअसल, प्रकृति ने भी अपने आपको एक निराले और बेहतरीन विज्ञान से निर्मित किया है और समय-समय पर अपने आपको संवारती भी रहती है। जैसे किसी को भी अपने कामों में किसी अन्य का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता, वैसे ही प्रकृति भी किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करती। यही वजह है कि जितना हम रोज प्रदूषण फैला रहे हैं प्रकृति भी हमको तेज गर्मी, आंधी, तूफान, सूनामी, बिजली, मूसलाधार बारिश, भूकंप सहित न जाने कितनी ही तकलीफें पहुंचा कर अपने संतुलन को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है।
आज आधुनिकीकरण की दौड़ में जंगल और पेड़ों को काटकर शहरों का निर्माण हो रहा है जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। एनसीआर में प्रतिदिन दर्जनों इमारतों का निर्माण होना, लाखों वाहनों और हजारों फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं, जहरीली गैसों का अत्याधिक उत्सर्जन सहित न जाने कितने ही तमाम कारण है जो यहां की गर्मी को सिर्र्फ पारे के हिसाब से ही नहीं कई अन्य वजहों से भी बढ़ा रहे हैं।
मौसम विभाग के वैज्ञानिक का कहना है कि काफी हद तक यह सही है कि गर्मी लगने का कारण सिर्फ पारे का चढऩा ही नहीं होता। हमारे आसपास बनी हुईं हजारों फैक्ट्रियां प्रतिदिन वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड, सल्फर डाई ऑक्साईड, कार्बन मोनो ऑक्साईड व मीथेन सहित न जाने कितनी ही अन्य हानिकारक और जहरीली गैसें घोलती हैं। इसके साथ ही वाहनों से निकलने वाला धुआं, पुराने हो चुके एअर कंडीशनर व फ्रिज, टायर व पॉलीथीन जैसी गंदगी को जलाना, नॉन रिसाइक्लेबिल प्रोडक्ट्स का प्रयोग, भवन निर्माण में उठने वाली धूल सहित कई ऐसे भी कारण है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे वातावरण को प्रदूषित करने के साथ ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहे हैं।
वातावरण में गर्मी बढऩे का एक कारण तो ग्लोबल वार्मिंग है ही लेकिन हमारे द्वारा प्रदूषण फैलाने से हमारा लोकल एटमॉशफीयर गर्म होकर ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ाता है। क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ एक ही जगह से नहीं बढ़ती है बल्कि इसके लिए पूरा विश्व जिम्मेदार है।
हमारे क्षेत्र में प्रदूषण बढऩे से गैसों ने एडमॉशफीयर की सबसे निचली सतह लोअर ट्रोपोस्फीयर के पास तक गैसों की एक लेयर(पर्त) बना दी है। जिससे हमारे आस पास का तापमान बढऩे से हमारे आस पास की हवा गर्म हो जाती है और इन प्रदूषित गैसों की पर्त के कारण ज्यादा उपर नहीं उठ पाती। चूंकि यहां पर पेड़ों की संख्या पर्याप्त न होकर कम है इसलिए यह गर्म हवा चारों ओर चलती रहती है। जिसके फलस्वरूप हमकड्ड भारत के ज्यादातर क्षेत्रों की तुलना में यहां पर गर्मी कुछ ज्यादा ही महसूस होती है।
गर्मी लगने के मुख्य कारण-
-फोटो सेंथेसिज(प्रकाश संश्लेषण क्रिया)- सूरज की रोशनी और वातावरण की कार्बन डाई ऑक्साईड गैस को पेड़ों की पत्तियां शोषित कर लेती हैं और वातावरण में ऑक्सीजन गैस उत्सर्जित करती हैं। पेड़ों की कमी से वातावरण में जहरीली गैसों की बढ़ोत्तरी, ऑक्सीजन की कमी, ठंडी हवा की कमी और भूगर्भ जल स्तर की गिरावट होती है। जिसके फलस्वरूप हम गर्म हवा, लू, ज्यादा तापमान, उमस की शिकायत करते हैं।
-ह्यïूमिडिटी- हवा में वाष्प की मात्रा को कहते हैं। हाई ह्यïूमिडिटी में पसीना निकलने में परेशानी होती है और ज्यादा गर्मी लगती है।
-कंफर्ट इंडेक्स- ह्यïूमिडिटी और तापमान के संयुक्त प्रभाव को कहते हैं। दोनों के बढऩे से कंफर्ट इंडेक्स बढ़ता है और गर्मी ज्यादा परेशान करती है।
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